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पाकिस्तान के लाहौर में हाफ़िज सईद गिरफ़्तार

पाकिस्तान में हाफ़िज़ सईद को गिरफ़्तार कर लिया गया है. उनकी गिरफ़्तारी लाहौर में की गई है.

हाफ़िज़ को तब गिरफ़्तार किया गया जब वे पंजाब के आंतकवाद निरोधी विभाग के एक मामले में गिरफ़्तारी से पहले ज़मानत लेने के लिए गुजरांवाला जा रहे थे.

इसके बाद उन्हें लाहौर के कोट लखपत जेल में भेजा गया है.

हाफ़िज़ सईद मुंबई हमलों के अभियुक्त हैं. उन्हें पाकिस्तान सरकार ने चरमपंथ के लिए फ़ंड इकट्ठा करने के आरोप में गिरफ़्तार किया है. पंजाब के राज्यपाल शाहबाज़ गिले के प्रवक्ता ने बताया, “उन पर मुख्य आरोप ये था कि वे बैन हो चुकी संस्थाओं के लिए चंदा जुटा रहे थे, जो गैर कानूनी है.”

जुलाई के पहले हफ्ते में जमात-उद-दावा के प्रमुख हाफ़िज़ सईद के ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज किया गया था.

आतंकवाद-रोधी विभाग के मुताबिक़, हाफ़िज़ सईद समेत लश्कर-ए-तयैबा और फ़लाह-ए-इंसानियत फ़ाउंडेशन के 13 सदस्यों के ख़िलाफ़ पंजाब के अलग-अलग शहरों में 23 मुक़दमे दर्ज किए गए थे.

सोमवार को ही लाहौर के आंतक निरोधी अदालत ने एक मामले में जमात उद दावा की ओर से

इन पर आरोप है कि उन्होंने कई ग़ैर-सरकारी संस्थाएं बनाईं जो आतंकवाद के लिए इकट्ठा किए जाने वाले पैसे से बनाए गए हैं. फिर उन्हें इस्तेमाल करते हुए चरमपंथी गतिविधियों के लिए और पैसा जमा किया गया.

जमात-उद-दावा के प्रवक्ता अहमद नदीम ने बीबीसी से कहा कि उन्होंने एफ़आईआर के ख़िलाफ़ लाहौर हाई कोर्ट में पहले ही याचिका दायर की है और कोर्ट ने गृह मंत्रालय और विभाग के अधिकारियों से इस पर 30 जुलाई तक जवाब तलब किया है.

क्या हैं आरोप

पंजाब के आतंकवाद-रोधी विभाग द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है कि जमात-उद-दावा, लश्कर-ए-तैयबा और फ़लाह-ए-इंसानियत फ़ाउंडेशन में बड़े पैमाने पर जांच शुरू की गई है. इन संगठनों के ज़रिए इकट्ठा किए गए पैसे का इस्तेमाल चरमपंथी गतिविधियों के लिए किया गया.

ये संगठन ग़ैर-सरकारी संगठनों या कल्याणकारी संगठनों के रूप में जाने जाते हैं. इस तरह के कल्याणकारी संगठनों में दावतुल रशाद ट्रस्ट, माज़-बिन-जब्ल ट्रस्ट, इलानफ़ाल ट्रस्ट, अल-हम्द ट्रस्ट और अल-मदीना फ़ाउंडेशन ट्रस्ट शामिल हैं.

आतंकवाद-रोधी विभाग के अनुसार, हाफ़िज़ सईद और अन्य 12 लोगों के ख़िलाफ़ आतंकवाद-रोधी क़ानून, 1997 के तहत विशेष अदालत में मुक़दमा चलाया जाएगा.

पाकिस्तान के इस क़दम की वजह

पाकिस्तानी सुरक्षा मामलों के विशेषज्ञ आमिर राणा के अनुसार, “हाल के मामलों से ये पता चलता है कि पूरी दुनिया में स्वीकार्य चरमपंथ की अवधारणा को पाकिस्तान ने पहली बार स्वीकार किया है.”

उन्होंने बताया कि इससे पहले, पाकिस्तान चरमपंथी संगठनों को विभिन्न प्रकारों में बांटता था जैसे जो पाकिस्तान में एक्टिव हैं या नहीं और जिनसे सीधे पाकिस्तान को ख़तरा है. पेरिस में फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की हालिया बैठक में पाकिस्तान ने कहा था कि ये संगठन चरमपंथी गतिविधियों में शामिल नहीं हैं.

इससे ज़्यादा ख़तरा तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान या आईएसआईएस जैसे और ख़तरनाक समूहों से हैं. हालांकि, वैश्विक समुदाय का मानना था कि इन सभी संगठनों से समान तरह का ख़तरा है.

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप से मिलने जाने वाले हैं, ऐसे में सरकार की यह कार्रावई मुलाक़ात से पहले बनाई जाने वाली भूमिका के रूप में देखा जा रहा है.