स्वतंत्रता दिवस पर अफगानिस्तान का झंडा लेकर लोगों ने किया प्रदर्शन

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 तालिबानी राज में आम लोगों की आजादी को लेकर उठ रहे सवालों के बीच अफगानिस्तान आज स्वतंत्रता दिवस दिवस मना रहा है. इस मौके पर राजधानी काबुल समेत कई शहरों में लोगों ने अफगानिस्तान का झंडा लेकर तालिबान के खिलाफ प्रदर्शन किया. काबुल में राष्ट्रपति भवन के नजदीक भी लोगों ने प्रदर्शन किया. इसमें महिलाएं और पुरुष शामिल थे.

देश के अन्य हिस्सों में भी प्रदर्शन हुए. इससे घबराए तालिबान के लड़ाकों ने भीड़ पर गोलियां चलाई, जिसमें कई लोगों की मौत हो गई और कई अन्य जख्मी हो गए.  न्यूज एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, महिला और पुरूषों ने काबुल में काला, हरा और लाल रंग वाले झंडे (अफगानिस्तान का झंडा) लेकर सड़कों पर निकले. कुनार प्रांत की राजधानी असादाबाद में रैली के दौरान कई लोगों की जान चली गई. यह स्पष्ट नहीं है कि लोगों की मौत गोली लगने से हुई है या गोली चलने की वजह से मची भगदड़ से.एक प्रत्यक्षदर्शी ने बताया कि पहले तो हमने डर से रैली में नहीं जाने का फैसला किया लेकिन जब पड़ोसियों को जाते देखा मैं भी गया. 

तालिबान के खिलाफ जलालाबाद और Paktia (पकटिया प्रांत) के शहरों में भी लोग सड़कों पर निकले. बता दें कि जलालाबाद में बुधवार को स्वतंत्रता दिवस से एक दिन पहले लोगों ने राष्ट्रीय ध्वज फहराया और तालिबान का झंडा उतार दिया. इस दौरान गोलीबारी में तीन लोगों की मौत हो गई थी.खोस्त प्रांत में तालिबान अधिकारियों ने प्रदर्शन को दबाने के बाद 24 घंटे का कर्फ्यू लगा दिया. विदेश से स्थिति की निगरानी कर रहे पत्रकारों से यह जानकारी मिली है.

यही नहीं अफगानिस्तान के पंजशीर घाटी में पहुंचे विपक्षी नेता ‘नदर्न अलायंस’ के बैनर तले सशस्त्र विरोध करने को लेकर चर्चा कर रहे हैं. यह स्थान ‘नदर्न अलाइंस’ लड़ाकों का गढ़ है, जिन्होंने 2001 में तालिबान के खिलाफ अमेरिका का साथ दिया था. यह एकमात्र प्रांत है जो तालिबान के हाथ नहीं आया है.तालिबान ने अभी तक उस सरकार के लिए कोई योजना पेश नहीं की है, जिसे चलाने की वह इच्छा रखता है. उसने केवल इतना कहा है कि वह शरिया या इस्लामी कानून के आधार पर सरकार चलाएगा.

स्वतंत्रता दिवस पर क्या बोला तालिबान?
तालिबान ने कहा, ‘‘यह सौभाग्य की बात है कि हम ब्रिटेन से आजादी की आज वर्षगांठ मना रहे हैं. इसके साथ ही हमारे जिहादी प्रतिरोध के परिणाम स्वरूप दुनिया की एक और अहंकारी ताकत अमेरिका असफल हुआ और उसे अफगानिस्तान की पवित्र भूमि से बाहर जाने पर मजबूर होना पड़ा.’’ 

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