Home समाचार अंतरराष्ट्रीय WHO की रिपोर्ट में हुआ कोरोना से पीड़ित व्यक्ति की डेडबॉडी का खुलासा, जानिए

WHO की रिपोर्ट में हुआ कोरोना से पीड़ित व्यक्ति की डेडबॉडी का खुलासा, जानिए

इस पर WHO की रिपोर्ट और डॉक्टरों से परामर्श लिया तो इसका उत्तर मिला लेकिन उसके पहले कोलकाता में कोरोना से हुई मौत और फिर शव के अंतिम संस्कार किए जाने पर क्या समस्याएं हुईं पहले ये जान लीजिए.

जहां पूरा देश कोरोना से लड़ रहा है, वहीं हम आपको एक ऐसी घटना के बारे में बताने जा रहे हैं जिसे सुनने के बाद आप सोचने पर मजबूर हो जाएंगे. दरअसल पश्चिम बंगाल में कोलकाता के धापा इलाके में, शुक्रवार को COVID-19 के संक्रमण के कारण सकाश नाम के एक शख्स की मौत हो गई. मौत के बाद जब उसके पार्थिव शरीर को अंतिम संस्कार के लिए सरकार द्वारा निर्धारित श्मशान घाट ले जाया जा रहा था, तभी पूरे इलाके में हजारों की संख्या में लोगों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी. हालांकि पुलिस ने इन लोगों को रोकने की कोशिश भी की लेकिन लोग नहीं माने. लोगों का कहना था कि मृतक एक कोरोना संक्रमित है और उसकी डेडबॉडी को जलाने से दूसरों पर भी कोरोना का असर पड़ सकता है.

बता दें कि फिर कोलकाता पुलिस के DC गौरव लाल मौके पर थे, उन्होंने लोगों से गुहार भी की लेकिन इलाके के लोग नहीं माने और लगातार विरोध करने लगे. फिर पुलिस ने स्थिति कंट्रोल करने की बहुत कोशिश की लेकिन भारी भीड़ के सामने पुलिस की टीम सफल नहीं हो पाई.

यहां दो विषय पर चर्चा करने जरूरी है, पहला जहां सरकार आम जनता से बार-बार गुहार लगा रही है कि एक जगह पर एक साथ 5 लोगों से ज्यादा इकट्ठा ना हों और फिर भी हमारे देश के लोग ये बात समझ नहीं पा रहे हैं. दूसरा सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या कोरोना पीड़ित की डेडबॉडी को जलाने या दफनाने से संक्रमण फैलने का खतरा है या नहीं. और अगर खतरा है तो फिर ऐसे लोगों की डेडबॉडी का अंतिम संस्कार कैसे किया जाए. इस प्रश्न का उत्तर पाने के लिए हमारी ज़ी मीडिया की टीम ने WHO की रिपोर्ट देखी और डॉक्टर से बात की.

WHO का रिपोर्ट के मुताबिक अगर कोरोना से संक्रमित होकर मरे किसी शख्स की डेडबॉडी को जलाया जाता है तो क्या होगा-

1 . अगर डेडबॉडी को इलेक्ट्रिक मशीन, लकड़ी या सीएनजी से जलाया जाता है तो जलते समय आग की तापमान 800 से 1000 डिग्री सेल्सियस होगा, ऐसे में कोई भी वायरस जीवित रहेगा.

2 . अगर डेडबॉडी को दफनाने की जगह और पीने के पानी के स्त्रोत में 30 मीटर या उससे अधिक की दूरी है तो कोई खतरा नहीं होगा.

WHO की ‘संक्रमण रोकथाम, महामारी नियंत्रण और स्वास्थ्य देखभाल में महामारी प्रवृत तीव्र श्वसन संक्रमण’ पर गाइडलाइंस में शव को आइसोलेशन रूम या किसी क्षेत्र से इधर-उधर ले जाने के दौरान शव के फ्लूइड्स के सीधे संपर्क में आने से बचने के लिए निजी सुरक्षा उपकरणों का समुचित इस्तेमाल करने का सुझाव दिया गया है.

क्या हैं गाइडलाइंस:
WHO के दिशा-निर्देशों में इस बात पर बहुत जोर दिया गया है कि COVID-19 हवा से नहीं फैलता बल्कि बारीक कणों के जरिए फैलता है.

मेडिकल स्टॉफ से कहा गया है कि वो COVID-19 के संक्रमण से मरे व्यक्ति के शव को वॉर्ड या आइसोलेशन रूम से WHO द्वारा बताई गई सावधानियों के साथ ही शिफ्ट करें.

शव को हटाते समय पीपीई का प्रयोग करें. पीपीई एक तरह का ‘मेडिकल सूट’ है, जिसमें मेडिकल स्टाफ को बड़ा चश्मा, एन95 मास्क, दस्ताने और ऐसा एप्रन पहनने का परामर्श दिया जाता है जिसके भीतर पानी ना जा सके.

मरीज के शरीर में लगीं सभी ट्यूब बड़ी सावधानी से हटाई जाएं. शव के किसी हिस्से में घाव हो या खून के रिसाव की आशंका हो तो उसे ढका जाए.
मेडिकल स्टाफ यह सुनिश्चित करे कि शव से किसी तरह का तरल पदार्थ ना रिसे.

शव को प्लास्टिक के लीक-प्रूफ बैग में रखा जाए. उस बैग को एक प्रतिशत हाइपोक्लोराइट की मदद से कीटाणुरहित बनाया जाए. इसके बाद ही शव को परिवार द्वारा दी गई सफेद चादर में लपेटा जाए.

केवल परिवार के लोगों को ही COVID-19 के संक्रमण से मरे व्यक्ति का शव दिया जाए.

कोरोना वायरस से संक्रमित व्यक्ति के इलाज में इस्तेमाल हुईं ट्यूब और अन्य मेडिकल उपकरण, शव को ले जाने में इस्तेमाल हुए बैग और चादरें, सभी को नष्ट करना जरूरी है.

मेडिकल स्टाफ को यह दिशा-निर्देश मिले हैं कि वे मृतक के परिवार को भी जरूरी जानकारियां दें और उनकी भावनाओं को ध्यान में रखते हुए काम करें.