Home अवर्गीकृत दिवाली पर सुरक्षा बलों के 11 हजार ग्राउंड कमांडर नाखुश, ये हैं कारण

दिवाली पर सुरक्षा बलों के 11 हजार ग्राउंड कमांडर नाखुश, ये हैं कारण

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हर पल जान हथेली पर रख कर अपनी ड्यूटी करने वाले अर्धसैनिक बलों के करीब 11 हजार ग्राउंड कमांडर इस दिवाली पर खुश नहीं हैं। वेतन विसंगतियां खत्म कराने और समय पर पदोन्नति मिल जाए, इसके लिए ये कमांडर एक दशक से लड़ाई लड़ रहे हैं। आग्रह करने पर बात नहीं बनी तो अदालत का रास्ता अख्तियार किया। हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी इनके पक्ष में फैसला दे दिया। इसके बाद केंद्र सरकार भी हरकत आई और कैबिनेट मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने घोषणा कर दी कि इन्हें संगठित कैडर के सभी लाभ मिलेंगे।

कमेटी में एक भी कैडर अफसर शामिल नहीं
इसका मतलब है कि अब इन कमांडरों को गैर-कार्यात्मक वित्तीय उन्नयन (एनएफएफयू) और गैर-कार्यात्मक चयन ग्रेड (एनएफएसयू) का लाभ मिल जाएगा। खास बात है कि अभी तक सरकार ने इन कमांडरों को संगठित कैडर में शामिल करने के लिए नियम नहीं बनाए हैं। कमांडरों को लग रहा है कि सरकार आईपीएस लॉबी के दबाव में आकर एक बार फिर उनके हितों के साथ खिलवाड़ कर रही है। अर्धसैनिक बलों के कैडर अधिकारी बताते हैं कि सरकार ने विवाद को खत्म करने के लिए जो कमेटी बनाई है, उसमें कैडर का कोई भी अफसर शामिल नहीं है। कमेटी में आईएएस हैं या आईपीएस।

सर्विस नियम बदलना बहुत जरूरी
सीआरपीएफ के सेवानिवृत आईजी वीपीएस पंवार का कहना है, अगर सरकार का मन साफ है तो वह बार बार सुप्रीम कोर्ट में समय क्यों मांग रही है। एक तरफ सरकार कहती है कि हम सभी फायदे देने को तैयार हैं तो दूसरी ओर नए सर्विस नियम तैयार नहीं किए जा रहे हैं। सर्विस नियम तैयार होने तक कोई फायदा नहीं होगा। वर्तमान सर्विस नियम में सभी कमांडर असंगठित कैडर के अंतर्गत आते हैं। इसमें सरकार की मनमर्जी चलेगी। संगठित कैडर का दर्जा मिलने के बाद इन अफसरों को एनएफएफयू और एनएफएसयू के सभी फायदे खुद ब खुद मिल जाएंगे।

क्या कहता है नियम
नियम तो यह कहता है कि सरकार 1986 से सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला लागू करे। अगर यह नहीं होता है तो कम से कम 2006 से सभी लाभ मिलें। पंवार के मुताबिक, फिलहाल सरकार का ऐसा कोई रवैया नहीं दिखता, जिससे कैडर अफसर राहत महसूस कर सकें।

आतंकियों और नक्सलियों से लिया लोहा
ये वही कमांडर हैं, जो नक्सल विरोधी अभियान, कश्मीर में आतंकवाद और सीमा पर देश के हितों की रखवाली के लिए तैनात हैं। यही अफ़सर देश भर में आंतरिक सुरक्षा के रख-रखाव के लिए कई प्रकार की भूमिकाएं भी निभाते हैं।

पुराने नियम से सिर्फ 20 फीसदी को फायदा
कैडर अफसरों का कहना है कि पुराने नियमों के तहत एनएफएफयू मिलता है तो मात्र बीस फीसदी अफसरों को फायदा होगा। जानबूझकर कई तरह की बाधाएं खड़ी करने का प्रयास किया जा सकता है। जैसे, परमोशन कोर्स की शर्त लगाई जा सकती है।सरकार कहेगी, जिन्होंने ये कोर्स नहीं किया है, उन्हें फायदे नहीं मिलेंगे। अर्धसैनिक बलों के कैडर अधिकारियों ने बताया कि इस मामले में केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट से समय मांगे जा रही है। आईपीएस एसोसिएशन हमारे खिलाफ अदालत पहुंच गई। उधर, केंद्र सरकार ने इस मामले में अंतिम जवाब देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अब 30 नवंबर तक का समय मांगा है। बता दें कि 11 हजार सेवारत ग्राउंड सेवारत कमांडरों में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल, सीमा सुरक्षा बल, केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल, भारत-तिब्बत सीमा पुलिस और सशस्त्र सीमा बल के अधिकारी शामिल हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने छठा वेतन देने की बात कही
इस साल फरवरी में सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में माना था कि सीएपीएफ के ग्रुप-ए के अधिकारियों को छठे वेतन आयोग के संदर्भ में 2006 से एनएफएफयू सहित सभी लाभ दिए जाने चाहिए। शीर्ष अदालत ने मामले की सुनवाई के दौरान दिल्ली हाईकोर्ट के दो फैसलों को सही ठहराया था, जिनमें इन बलों को ‘संगठित सेवा’ का दर्जा दिया गया था।

लम्बे समय से चल रहा है यह विवाद
पिछले चार-पांच वर्षों से गृह मंत्रालय में आईपीएस और विभिन्न अर्धसैनिक बलों के कैडर अफसरों के बीच अपने हितों को लेकर विवाद चल रहा है। इस विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने भी गत फरवरी में कैडर अफसरों के पक्ष में फैसला सुना दिया। इसमें कहा गया कि केंद्रीय अर्धसैनिक बलों को ग्रुप-ए की संगठित सेवाओं का दर्जा देकर वहां तत्काल प्रभाव से एनएफएफयू (नॉन फंक्शनल फाइनेंसियल अपग्रेडेशन) लागू किया जाए। यानी एक तय समय के बाद यदि अगला रैंक (किसी वजह से जैसे सीट खाली नहीं है या कोई दूसरी दिक्कत है) नहीं मिलता है तो उस रैंक के सभी वित्तिय फायदे संबंधित अधिकारी को दें। इसके खिलाफ आईपीएस एसोसिएशन भी सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गई। हालांकि अभी तक एनएफएफयू बाबत कोई भी अंतिम फैसला नहीं हो सका है। गृह मंत्रालय के सूत्र बताते हैं कि इस मामले में सरकार काफी आगे बढ़ चुकी है। संभवतया अगले माह तक कोई न कोई फैसला हो जाएगा।

संगठित कैडर सर्विस में नहीं आते अर्धसैनिक बलों के अधिकारी
अर्धसैनिक बल जैसे सीआरपीएफ, एसएसबी, आईटीबीपी, बीएसएफ और सीआईएसएफ के अफसर संगठित कॉडर सर्विस में नहीं आते हैं। हालांकि इनकी भर्ती भी यूपीएससी करता है। मगर प्रमोशन के नियम दोनों के लिए अलग—अलग है। सीआरपीएफ के पूर्व आईजी वीपीएस पंवार का कहना है कि बीस साल की सेवा के बाद आईपीएस अधिकारी आईजी बन जाता है, लेकिन कैडर अफसर उस वक्त कमांडेंट तक पहुंच पाता है। 33 साल की नौकरी के बाद कैडर अफसर बड़ी मुश्किल से आईजी बन पाता है। वजह, अर्धसैनिक बलों को संगठित कैडर सेवा का दर्जा नहीं दिया गया है। अब सुप्रीम कोर्ट से कैडर अफसरों के हित में फैसला दे दिया है तो आईपीएस अफसर खुद को विचलित महसूस कर रहे हैं। चूंकि गृह मंत्रालय में पूरी तरह से आईपीएस लॉबी का दबदबा है, इसलिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को टालने की हर जुगत लगाई जा रही है। आईपीएस एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी थी कि उसे भी इस मामले में पार्टी बनाया जाए।हालांकि अदालत ने यह याचिका खारिज कर दी थी।

11 हजार अफसरों को पहुंचेगा फायदा
बता दें कि अगर सुप्रीम कोर्ट का फैसला ईमानदारी से लागू होता है तो कम से कम अर्धसैनिक बलों के दस हजार अफसरों को इसका फायदा पहुंचेगा। यदि सीआरपीएफ की बात करें तो 23 डीआईजी, जो आज 33 साल की नौकरी पूरी कर चुके हैं, वे तुरंत प्रभाव से आईजी बन जाएंगे। तीन आईजी एडीजी रैंक पर होंगे, 40 कमांडेंट डीआईजी बनेंगे और एक एडीजी स्पेशल डीजी बन सकता है। खास बात है कि एनएफएफयू (नॉन फंक्शनल फाइनेंसियल अपग्रेडेशन) लागू करने के लिए जो कमेटी बनाई गई है, उसमें सभी सदस्य आईएएस हैं या आईपीएस हैं। कमेटी में अर्धसैनिक बलों का कोई प्रतिनिधि नहीं यानी कॉडर अफ़सर शामिल नहीं है।