कतर की राजधानी दोहा में आज अमेरिका और तालिबान के बीच एक अहम शांति समझौता होने जा रहा है। अफगानिस्तान में सबसे लंबे वक्त तक चले युद्ध से अमेरिका अपने सैनिकों को धीरे-धीरे वापस बुलाने के लिए यह समझौता कर रहा है। इसको लेकर तालिबान और अमेरिका के बीच करीब एक साल से ज्यादा समय से बातचीत चल रही थी।
दोनों देशों के बीच हो रहे इस समझौते में खास बात यह है कि गवाह के तौर पर करीब 30 देश शामिल होंगे। इसके अलावा ये पहला मौका होगा जब भारत तालिबान से जुड़े किसी मामले में आधिकारिक तौर पर शामिल होगा।
समझौते को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 28 फरवरी को कहा, ‘जल्द ही, मेरे निर्देश पर, विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ तालिबान के प्रतिनिधियों के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर करेंगे जबकि रक्षा मंत्री मार्क एस्पर अफगानिस्तान की सरकार के साथ संयुक्त घोषणा-पत्र जारी करेंगे।’
उन्होंने कहा, ‘अगर तालिबान और अफगानिस्तान सरकार अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा कर लेती है तो हम अफगानिस्तान में युद्ध खत्म करने की दिशा में मजबूती से आगे बढ़ेंगे साथ ही अपने सैनिकों को घर वापस ला पाएंगे।’
ट्रम्प ने कहा कि ये प्रतिबद्धताएं अलकायदा, आईएस और बाकी आतंकवादी संगठनों से मुक्त नए अफगानिस्तान में दीर्घकालिक शांति स्थापित करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम को दर्शा रही हैं।
अपने भविष्य के लिए सोचने का काम आखिरकार अफगानिस्तान के लोगों पर निर्भर है। हम अफगान लोगों से शांति स्थापित करने और उनके देश के लिए नया भविष्य बुनने के अवसर का लाभ लेने की अपील करते हैं।
इसके बाद ट्रम्प ने याद दिलाया कि करीब 19 साल पहले अमेरिकी सैनिक 9/11 हमलों के लिए जिम्मेदार आतंकवादियों के सफाया करने के लिए अफगानिस्तान गए थे।
इस शांति समझौते के दौरान भारत भी गवाह के तौर पर शामिल होगा। हस्ताक्षर से एक दिन पहले विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला काबुल पहुंचे और शांतिपूर्ण व स्थिर अफगानिस्तान के लिए भारत का निर्बाध समर्थन व्यक्त किया। विदेश सचिव ने अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री हारून चाखनसुरी से बातचीत की और विकास को लेकर उसकी प्रतिबद्धता की भी जानकारी दी।